Tuesday, March 24, 2009

"पत्थर"

मुझे पता है
तुम्हारा जवाब
नहीं मानोगे तुम
खुद को या खुद के दिल को
पत्थर
क्यूकि तुम बहा लेते हो कुछ आंसू
समय समय पर.

""तड़प""

जरा सी जिन्दगी से
जरा सी दोस्ती से
चले आये यहाँ तक
जरा सी बेखुदी से
उठा है फिर से धुंवां
किसी कि रौशनी से
परेशां हो न जाये
तू मेरी शायरी से
मिले है राख फिर कुछ
तुम्हारी उस गली से
जहां रखें थे सपने
छुपा कर हर किसी से.

"तन्हाई"

न आये तुम 
न तेरी यादें आईं
मैं खामोश रहा इक अरसे तक
न आवाजे तेरी आईं 
टूटे आस बिखरे सब सपने
कुछ बचा तो बस
मेरी तन्हाई
जो बिलकुल मेरी अपनी है 
जैसे मेरी खुद की परछाई
न आये तुम 
न तेरी यादें आईं .

"गर में तुमसे कहूं "


गर मैं तुमसे कहूं
कि मैं तुमसे रिश्ता बनाना चाहता हूँ
तो तुम डर से जाओगे
पता है क्यों
क्यूकि तुम सोचते हो मुझे
अपने जैसा .

"कि तेरी याद फिर आई"

ढली शाम
फिर पहुची चुपके चुपके
मेरे दिल के आँगन एक तन्हाई
कि तेरी याद फिर आई

बैठा अंधरे में
मैं पढ़ रहा हूँ
अपने मोबाइल के इन्बोक्स में
तेरे भेजे गए सन्देश
तो ऐसा लग रहा है
छुपी है  कहीं दिल में  मेरे
तेरी नजरों की परछाई
कि तेरी याद फिर अई
 
बात करने की तुमसे सोचता हूँ
साथ चलने के तेरे सोचता हूँ
आती है बिजली
बजता है डोर-बेल
दौड़ते हैं पैर दरवाजे की ओर 
खुलती है फाटक इक आस में जब  
हर चहरे में तुझको देखता हूँ  
ये फलसफा पहली बार नहीं 
जब नैनो से बह गई तेरी जुदाई  
कि तेरी याद फिर आई .