ढली शाम
फिर पहुची चुपके चुपके
मेरे दिल के आँगन एक तन्हाई
कि तेरी याद फिर आई
बैठा अंधरे में
मैं पढ़ रहा हूँ
अपने मोबाइल के इन्बोक्स में
तेरे भेजे गए सन्देश
तो ऐसा लग रहा है
छुपी है कहीं दिल में मेरे
तेरी नजरों की परछाई
कि तेरी याद फिर अई
बात करने की तुमसे सोचता हूँ
साथ चलने के तेरे सोचता हूँ
आती है बिजली
बजता है डोर-बेल
दौड़ते हैं पैर दरवाजे की ओर
खुलती है फाटक इक आस में जब
हर चहरे में तुझको देखता हूँ
ये फलसफा पहली बार नहीं
जब नैनो से बह गई तेरी जुदाई
कि तेरी याद फिर आई .