Saturday, February 4, 2017

"तुम्हें याद करूँ या भुला दूँ मैं,
तुम्हीं बताओं तुम्हें कौन सी सज़ा दूँ मैं!"

#Shashish

Friday, January 27, 2017

"या तो परिस्तिथियाँ तुम्हें बदल देंगी या तो तुम परिस्तिथियों को बदल दोगे; अच्छा होगा अगर हम परिस्तिथियों के गुलाम बनने से इनकार कर दें क्योंकि ऐसा कर के ही हम अपनी असीमित क्षमताओं के बारे में जान पाएंगे!"

#Shashish

Saturday, December 10, 2016

"बेवजह ये कैसी हैं खामोशियाँ
कुछ कुछ तुझमें हैं
कुछ कुछ मुझमें हैं
ना जाने कहाँ से हैं किसकी हैं
गुमनाम गुमशुदा
ये हम दोनों के दरम्यां खामोशियाँ!

कुछ तू समझ
कुछ मैं समझ लूँ
शायद समझ में आ जाएं ये खामोशियाँ 
शायद इस बेवजह की कोई वजह मिले
शायद कुछ बोल दें ये खामोशियाँ!

बेवजह आखिर ये क्या कर रहीं हैं
कुछ तो जवाब दें
हम दोनों के बीच बैठीं
ये गुमनाम गुमशुदा खामोशियाँ!"

-शशिष
(10th Dec '16, 11.54pm, Bgp)

Friday, December 2, 2016

"मुझे मार डालो मेरी ही ख़ुशी के लिए
तनहाइयाँ काफी नहीं हर किसी के लिए

यूं बिन तेरे जीने का भी जिक्र किससे करें
सांस नहीं रक्खी हमने मुफ़लिसी के लिए!"

-शशिष



"ना गीता गलत है ना कुरान गलत है
जो न समझे इंसानियत वो इंसान गलत है!"

शशिष 

Thursday, December 1, 2016

"जिनती उम्मीदें की
उतना दर्द हुआ
लेकिन और करता भी क्या
तुमसे भी न करता उम्मीदें
तो भला करता किससे
कुछ ज़ख्म तुम्हारे दिए हुए
बहुत संभाल कर रखता हूँ
रातों की तन्हाइयों में इन्हें
दिल में जिन्दा करता रहता हूँ
ये ज़ख्म तुम्हारे बाद सबसे कीमती हैं मेरे लिए
ये मुझे याद दिलाते हैं
कि उम्मीद करने का हक़ मुझे बस तुमसे था
और किसी से नहीं
अब कोई उम्मीद किसी से नहीं
अब कोई दर्द दर्द भी नहीं
तुम्हीं से भरा हुआ हूँ मैं
और खुश हूँ अपने ज़ख़्मों में मैं
तुम्हें महसूस कर कर के!"

-शशिष

"तुम्हें कुछ देर और रुकना था
थोड़ी देर और
इंतज़ार करना था मेरा
मैं था
हाँ मैं था प्रिय
मैं रस्ते में था
क्या हवाओं ने तुम्हें कुछ बताया नहीं था
क्या बादलों ने कुछ इशारे नहीं किये थे
क्या साँसें तेज नहीं हुईं थीं तुम्हारी
मैं था प्रिय
वहीँ उसी रस्ते में
जहाँ से शायद कुछ देर पहले
आगे बढ़े होगे तुम
छोड़ कर मेरा इंतज़ार वहीँ पीछे कहीं!"

-शशिष
"अब और क्या लिखूं मैं
तुम्हें लिखा था जब तक मैंने
लिखा था खुद को भी उसी में मैंने

अब तुम्हें लिखने की
कोई जरुरत महसूस नहीं होती
कुछ महसूस ही नहीं होता तुम्हारे बिना
कि तुम वो एहसास थे जिसे लिखना था
जिसे जीना था 
कि तुम हो ख्वाब थे जिसे पाना था
तुमने जितना समझा खुद को मेरे लिए
उससे कहीं अधिक थे तुम
उससे कहीं ज्यादा

कि तुम थे
तो थे शब्द मेरे पास
अब तुम नहीं हो
तो बस खामोशियाँ हैं
ये मेरे आस पास
मेरे बहार भीतर
हर जगह पसरी हुईं हैं
तुम्हारे नाम की खामोशियाँ

अब और क्या लिखूं मैं!!!"

-शशिष