"बेवजह ये कैसी हैं खामोशियाँ
कुछ कुछ तुझमें हैं
कुछ कुछ मुझमें हैं
ना जाने कहाँ से हैं किसकी हैं
गुमनाम गुमशुदा
ये हम दोनों के दरम्यां खामोशियाँ!
कुछ तू समझ
कुछ मैं समझ लूँ
शायद समझ में आ जाएं ये खामोशियाँ
शायद इस बेवजह की कोई वजह मिले
शायद कुछ बोल दें ये खामोशियाँ!
बेवजह आखिर ये क्या कर रहीं हैं
कुछ तो जवाब दें
हम दोनों के बीच बैठीं
ये गुमनाम गुमशुदा खामोशियाँ!"
-शशिष
(10th Dec '16, 11.54pm, Bgp)